समस्या -
शराबी या नशैलची शब्द सुनते ही एक ऐसे आदमी का चेहरा सामने आता है जो सबसे लड़ता रहता है, बिना बात गालियां बकता रहता है, घर का समान बेच रहा होता है, उसका व्यापार बंद हो चुका होता है या नौकरी जा चुकी होती है, उसके बीबी, बच्चे और वो खुद दयनीय स्थिति में होता है। क्या हमे लगता है कि कोई व्यक्ति ऐसी ज़िन्दगी चाहता होगा ? इसका जवाब हम सभी न में ही देंगे। फिर ऐसा क्यों होता है वो आदमी अपना काम, सम्मान,संबंध और बहुत बार अपना जीवन भी दाव पर लगा होने के बाद भी अपना नशा बंद क्यों नहीं करता है और बहुत से मामलों में डॉक्टर ने बोला होता है कि यदि और पीयोगे तो मर जाओगे और वो व्यक्ति शराब रोकने की जगह पीकर मर जाता है। भारत में लगभग हर वर्ष लगभग 5 लाख लोग शराब के कारण मर जाते है, जबकि उनमें से अधिकतर को डॉक्टरों द्वारा पहले ही बताया चुका होता है कि और पियोगे तो मर जाओगे, ऐसा क्यों है ? इसका जवाब हम लोगों के पास नहीं है क्योंकि अधिकतर लोगों की सोच होती है कि एक शराबी या एडिक्ट अच्छा होना ही नहीं चाहता है और दूसरों को परेशान करने के लिए जानबूझकर पीता है या तो मारने के लिए उतावला है, लेकिन ऐसा नहीं है। इस प्रश्न का जवाब सर्वप्रथम एल्कोहलिक अनोनीमस नामक संस्था ने 1935 में दिया जिसने कहा कि एडिक्शन एक बीमारी है इसने बताया कि 100 शराब पीने वालों में से लगभग 8 से 10 प्रतिशत लोग ऐसे होते है कि वे जब मूड या माइंड बदलने(अल्टर) करने वाले पदार्थ जैसे शराब, गांजा, अफीम या स्मैक के संपर्क में आते है या कहे की उसको उपयोग करना शुरू करते है तो उनके शरीर में एक एलर्जी होती है, एलर्जी मतलब एक असामान्य प्रतिक्रिया, जो सामान्यतः सभी को नहीं होती है जिसके कारण उनका शरीर और-और (more & more) नशा मांगने लगता है ,वो चाह कर भी अपने आप को ज्यादा नशा करने से रोक नहीं पाते हैं और ना पूरी तरह से छोड़ पाते है। नशे पर नियंत्रण में कमी ही इस बीमारी का मुख्य लक्षण है,नहीं तो कौन आदमी ये सोच के घर से निकलता है कि "इतनी पियूंगा की आज में नाली में गिरूंगा" या "कुछ ऐसा करूंगा की थाने में बंद हो जाऊंगा या पब्लिक मुझ को मारेगी"। कोई नहीं चाहता कि उसका परिवार बिखर जाए, नौकरी, व्यापार और जान चली जाए। किसी व्यक्ति का जो इस बीमारी से पीडित है नशे पर नियंत्रण ना कर पाना उसका चुनाव नहीं उसकी मजबूरी होता है क्योंकि ये एक बढ़ती हुई बीमारी है जो कि धीरे-धीरे बढ़ती है और व्यक्ति का नशा भी धीरे-धीरे बढ़ता जाता है, (उन व्यक्तियों का नशा नहीं बढ़ता है जिनको ये बीमारी नहीं होती है) एक समय ऐसा आता है कि व्यक्ति 24 घंटे नशे में रहने लगता है। इसका कारण नशे पर उसकी शारीरिक और मानसिक निर्भरता बढ़ जाना होता है और वो चाह कर भी अपने नशे को नहीं रोक सकता है, अचानक रोकने पर कुछ मामलों में मृत्यु भी हो सकती है। इस बीमार का एक लक्षण इसके पीड़ित में अपनी समस्या को लेकर अस्वीकार (denial) करना होता है क्योंकि उसने अपने मस्तिष्क में शराबी या नशैलची की एक पिक्चर बनाई होती है जिसमें वो शुरुआत में अपने को फिट नहीं कर पाता है वो हमेशा अपने से ज्यादा नशा करने वालों से अपने नशे कि तुलना कर-कर अपनी समस्या को छोटा कर के देखता रहता है, जब तक वो उस स्तर तक ना पहुंच जाए वो मानता ही नहीं है कि उसको नशे से समस्या है। इस कारण उसकी समस्या निरंतर बढ़ती जाती है और जब वो मानने लगता है कि समस्या है तब तक विलंब हो जाता है, बहुत नुकसान हो चुका होता है और नशे से बाहर आना भी कठिन हो जाता है। जब व्यक्ति मानने लगता है कि उसको नशों से समस्या है और वो सामान्य तरीके नशा नहीं कर पाता है तो वह छोड़ना तो चाहता है, किन्तु नशों पर उसकी शारीरिक और मानसिक निर्भरता के कारण उसका शरीर और दिमाग नशा मांगता है ,यह सब कुछ जानते हुए कि और पीना ठीक नहीं है और "मैं जब पीता ही तो ज्यादा पीने से खुद को रोक नहीं सकता हूं", उसके दिमाग में नशे कि ओर ले जाने वाला एक विचार होता है जिसको मानसिक खिंचाव (mental obsession) कहते है, वो यह होता है कि "आज थोड़ा सा लिमिट में कर लेता हूं और कल से बंद कर दूंगा" ये विचार रोज आता है कि "कल से बंद, आज थोड़ी सी पी लेता हूं,एकदम से छोड़ना ठीक नहीं है" अधिकतर देखा गया है कि पीने जाते समय उसके पास एक ईमानदार विचार होता है कि "आज लिमिट में पियूंगा" किन्तु उसकी बीमारी का जो लक्षण है कि, वो जैसे ही थोड़ा सा नशा करता है फिजिकल एलर्जी के कारण उसका शरीर और-और ( more more ) मांगने लगता है जिस कारण वो स्वयं को ज्यादा पीने से रोक नहीं पाता है। मानसिक खींचाव (mental obsession) के कारण उसका कल कभी नहीं आ पाता है। लम्बे समय तक नशे करने के बाद व्यक्ति के अंदर अपनी गलतियों के कारण अपराधबोध (guilt ), भय और खुन्नस (resentment) आ जाते है, जिसके कारण वो स्वयं को अकेला (isolate) कर लेता है। वह लोगों और परिस्थितियों का सामना बिना नशे के नहीं कर पाता है। इनके समाधान की भी आवश्यकता होती है क्योंकि नशा बंद करने के बाद ये बातें उसे फिर से नशे की ओर ले जाती हैं। अमेरिकन मेडिकल एोसिएशन ने 1956 में एडिक्शन को बीमारी घोषित किया इसके बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी 1964 में एडिक्शन को बीमारी घोषित किया है तथा भारत सरकार के स्वास्थ्य विभाग भी बीमारियों की सूची में एडिक्शन को F 9 से F 20 तक डाला हुआ है, पर हमारे समाज में इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति की छवि एक खलनायक की होती है, उसके साथ लोगों की वो सहानुभूति नहीं होती है जो की किसी अन्य बीमारी से पीड़ित व्यक्ति साथ होती है। हमारे समाज द्वारा इस बीमारी से निपटने का पहला उपचार जूता होता है, अर्थात सबसे पहले उसको पीटा जाता है और जब इससे भी बात नहीं बनती तो कसम, महामृत्युंजय जाप, यज्ञ, बाबा, भभूत आदि का दौर चलता है और सबसे आखिर में रामबाण "शादी कर दो ठीक हो जाएगा"। क्या हम किसी और बीमारी में ये तरीके उपचार के लिए आजमाते है ? नहीं। तो फिर एडिक्शन को हम कैसे इन तरीकों से ठीक कर सकते है? एक शराबी या नशैलची से उम्मीद की जाती है कि वो इच्छा शक्ति से ठीक हो जाए क्या हम कोई और बीमारी जैसे जुकाम, दस्त या बुखार को इच्छा शक्ति से ठीक कर सकते है ? यदि नहीं तो हम एडिक्शन जैसी जानलेवा बीमारी से पीड़ित व्यक्ति से कैसे उम्मीद कर सकते है कि वो इच्छा शक्ति से अपना उपचार कर खुद ठीक हो जाए? इस समस्या से निपटने के लिए आज सबसे ज्यादा जरूरत समाज को इन पीड़ित व्यक्तियों के प्रति और इस समस्या के प्रति अपना नजरिया बदलने की है। आइए हम पहले इस समस्या के बारे में जाने और फिर इसका समाधान करें।
समाधान -
दुर्भाग्यवश अभी तक चिकित्सा विज्ञान के पास कोई ऐसी दवाई नहीं है कि व्यक्ति को खिला दो और वो वह नशा करना बंद कर दे या नियंत्रिण मात्रा में करने लगे। किन्तु अमेरिका से आए 12 स्टेप प्रोग्राम ( एल्कोहलिक एनोनिमस और नारकोटिक्स एनोनिमस ) नशा मुक्ति लिए अभी तक सबसे प्रभावी रहे है , ये प्रोग्राम कहता है कि नशा मुक्ति (deaddiction) के लिए आवश्यक है कि सबसे पहले व्यक्ति स्वीकार करे की उसको नशे से समस्या है और इस कारण उसको जीवन अस्त व्यस्त हो गया है इसके बाद व्यक्ति को सबसे ज्यादा आवश्यकता मानसिक बदलाव या कहें कि विचारों में परिवर्तन की होती है। इसके लिए हमारे यहां विशेषज्ञ काउंसलर होते है। हमारे केंद्र नशा पीड़ित व्यक्तियों को बुरा व्यक्ति ना मान कर उन्हें बीमार व्यक्ति माना जाता है और प्रेम और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार किया जाता है। इस 12 स्टेप प्रोग्राम की सहायता से तथा प्रोग्राम में कुछ साइकोलॉजिकल तकनीक (साइको थेरेपीज) होती है इनसे तथा इसके साहित्य को आधार रख कर कक्षाएं होती है जिनके माध्यम से उनके विचारों में परिवर्तन करने में मदद की जाती है। जिससे वे अपनी बीमारी के प्रति एक नई और व्यावहारिक समझ विकसित कर पाते है और नशे में किए गए गलत कार्यों के कारण जो उनके अंदर अपराध बोध और भय आ जाता है, उससे मुक्त होते है। इस कार्यक्रम की कुछ मनोवैज्ञानिक तकनीक और काउंसलिंग द्वारा उनके अंदर अपने परिवार, मित्रों और समाज के प्रति जो खुन्नस उनके अंदर आ जाती है उसे भी समाप्त करने में मदद की जाती है। लगातार नशे करने के कारण व्यक्ति के विचार अस्थिर तथा संकल्प शक्ति कमजोर हो जाती है। इस समस्या को दूर करने लिए हमारे केंद्र में आयुर्वेदिक चिकित्सक के माध्यम से शिरो-धारा करवाई जाती है। ये एक बहुत पुरानी तकनीक है विचारों में स्थिरता लाने की। शिरो धारा लंबे समय तक नशा करने के कारण बहुत से लोगों को मानसिक परेशानियां हो जाती है उनके निदान के लिए मनोचिकित्सक (साइकिएट्रिस्ट) की आवश्यकता होती है जिनकी सुविधा हमारे केंद्र में उपलब्ध है। विथड्रावल एवं हेलुसिनेशन प्रबंधन( withdrawal & hallucination management) अचानक नशा बंद करने के कारण जो शारीरिक तथा मानसिक परेशानियां ( withdrawal and hallucination ) होती है कई बार तो यदि ठीक से इसका प्रबंधन किया जाए तो अत्यधिक मात्रा में नशा करने वाले ( heavy user) की अचानक नशा बंद करने से मृत्यु भी हो सकती है। इस समस्या के समाधान के लिए हमारे केंद्र में नशा मुक्ति के विशेषज्ञ साइकिएट्रिस्ट, एमबीबीएस डॉक्टर तथा नर्स की सुविधा उपलब्ध है जिनके द्वारा विथड्रावल मैनेजमेंट किया जाता है जिससे एकदम से नशा बंद करने के बाद भी उन्हें किसी तरह का कष्ट नहीं होता है। विषहरण ( detoxification) लंबे समय तक नशा करने के कारण शरीर में जो विषाणु ( toxins) बन जाते है उन्हें शरीर से निकलने के लिए शरीर का विषहरण ( detoxificarion ) दवाइयों के द्वारा चिकित्सक की देखरेख में किया जाता है। अन्य गतिविधियां हमारे केंद्र में खुला और बड़ा स्थान उपलब्ध है जिसमें व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखने के लिए नियमित योग, प्राणायाम और ध्यान करवाया जाता है। इसके द्वारा उसके मस्तिष्क के असक्रिय सेल( inactive cells) को सक्रिय करवाया जाता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार इनडोर खेलों (indoor games) के माध्यम से उसको नशे के अलावा अन्य मनोरंजन के साथ जीना सिखाया जाता है। भोजन व्यवस्था हमारे केंद्र में पीड़ित व्यक्ति को शुद्ध शाकाहारी, पौष्टिक और सात्विक आहार तथा रात को सोने से पहले दूध दिया जाता है,स्वच्छ पानी के लिए आर ओ प्लांट केंद्र में लगा हुआ है। नशा पीड़ित को घर से लेने की सुविधा कुछ व्यक्ति नशे के ऊपर अत्यधिक शारीरिक और मानसिक निर्भरता हो जाने के कारण सोचने समझने और स्वयं को रोक पाने में असमर्थ होते है, ऐसे लोगों को केंद्र में लाने के लिए वाहन सुविधा उपलब्ध है।
शराबी या नशैलची शब्द सुनते ही एक ऐसे आदमी का चेहरा सामने आता है जो सबसे लड़ता रहता है, बिना बात गालियां बकता रहता है, घर का समान बेच रहा होता है, उसका व्यापार बंद हो चुका होता है या नौकरी जा चुकी होती है, उसके बीबी, बच्चे और वो खुद दयनीय स्थिति में होता है। क्या हमे लगता है कि कोई व्यक्ति ऐसी ज़िन्दगी चाहता होगा ? इसका जवाब हम सभी न में ही देंगे। फिर ऐसा क्यों होता है वो आदमी अपना काम, सम्मान,संबंध और बहुत बार अपना जीवन भी दाव पर लगा होने के बाद भी अपना नशा बंद क्यों नहीं करता है और बहुत से मामलों में डॉक्टर ने बोला होता है कि यदि और पीयोगे तो मर जाओगे और वो व्यक्ति शराब रोकने की जगह पीकर मर जाता है। भारत में लगभग हर वर्ष लगभग 5 लाख लोग शराब के कारण मर जाते है, जबकि उनमें से अधिकतर को डॉक्टरों द्वारा पहले ही बताया चुका होता है कि और पियोगे तो मर जाओगे, ऐसा क्यों है ? इसका जवाब हम लोगों के पास नहीं है क्योंकि अधिकतर लोगों की सोच होती है कि एक शराबी या एडिक्ट अच्छा होना ही नहीं चाहता है और दूसरों को परेशान करने के लिए जानबूझकर पीता है या तो मारने के लिए उतावला है, लेकिन ऐसा नहीं है। इस प्रश्न का जवाब सर्वप्रथम एल्कोहलिक अनोनीमस नामक संस्था ने 1935 में दिया जिसने कहा कि एडिक्शन एक बीमारी है इसने बताया कि 100 शराब पीने वालों में से लगभग 8 से 10 प्रतिशत लोग ऐसे होते है कि वे जब मूड या माइंड बदलने(अल्टर) करने वाले पदार्थ जैसे शराब, गांजा, अफीम या स्मैक के संपर्क में आते है या कहे की उसको उपयोग करना शुरू करते है तो उनके शरीर में एक एलर्जी होती है, एलर्जी मतलब एक असामान्य प्रतिक्रिया, जो सामान्यतः सभी को नहीं होती है जिसके कारण उनका शरीर और-और (more & more) नशा मांगने लगता है ,वो चाह कर भी अपने आप को ज्यादा नशा करने से रोक नहीं पाते हैं और ना पूरी तरह से छोड़ पाते है। नशे पर नियंत्रण में कमी ही इस बीमारी का मुख्य लक्षण है,नहीं तो कौन आदमी ये सोच के घर से निकलता है कि "इतनी पियूंगा की आज में नाली में गिरूंगा" या "कुछ ऐसा करूंगा की थाने में बंद हो जाऊंगा या पब्लिक मुझ को मारेगी"। कोई नहीं चाहता कि उसका परिवार बिखर जाए, नौकरी, व्यापार और जान चली जाए। किसी व्यक्ति का जो इस बीमारी से पीडित है नशे पर नियंत्रण ना कर पाना उसका चुनाव नहीं उसकी मजबूरी होता है क्योंकि ये एक बढ़ती हुई बीमारी है जो कि धीरे-धीरे बढ़ती है और व्यक्ति का नशा भी धीरे-धीरे बढ़ता जाता है, (उन व्यक्तियों का नशा नहीं बढ़ता है जिनको ये बीमारी नहीं होती है) एक समय ऐसा आता है कि व्यक्ति 24 घंटे नशे में रहने लगता है। इसका कारण नशे पर उसकी शारीरिक और मानसिक निर्भरता बढ़ जाना होता है और वो चाह कर भी अपने नशे को नहीं रोक सकता है, अचानक रोकने पर कुछ मामलों में मृत्यु भी हो सकती है। इस बीमार का एक लक्षण इसके पीड़ित में अपनी समस्या को लेकर अस्वीकार (denial) करना होता है क्योंकि उसने अपने मस्तिष्क में शराबी या नशैलची की एक पिक्चर बनाई होती है जिसमें वो शुरुआत में अपने को फिट नहीं कर पाता है वो हमेशा अपने से ज्यादा नशा करने वालों से अपने नशे कि तुलना कर-कर अपनी समस्या को छोटा कर के देखता रहता है, जब तक वो उस स्तर तक ना पहुंच जाए वो मानता ही नहीं है कि उसको नशे से समस्या है। इस कारण उसकी समस्या निरंतर बढ़ती जाती है और जब वो मानने लगता है कि समस्या है तब तक विलंब हो जाता है, बहुत नुकसान हो चुका होता है और नशे से बाहर आना भी कठिन हो जाता है। जब व्यक्ति मानने लगता है कि उसको नशों से समस्या है और वो सामान्य तरीके नशा नहीं कर पाता है तो वह छोड़ना तो चाहता है, किन्तु नशों पर उसकी शारीरिक और मानसिक निर्भरता के कारण उसका शरीर और दिमाग नशा मांगता है ,यह सब कुछ जानते हुए कि और पीना ठीक नहीं है और "मैं जब पीता ही तो ज्यादा पीने से खुद को रोक नहीं सकता हूं", उसके दिमाग में नशे कि ओर ले जाने वाला एक विचार होता है जिसको मानसिक खिंचाव (mental obsession) कहते है, वो यह होता है कि "आज थोड़ा सा लिमिट में कर लेता हूं और कल से बंद कर दूंगा" ये विचार रोज आता है कि "कल से बंद, आज थोड़ी सी पी लेता हूं,एकदम से छोड़ना ठीक नहीं है" अधिकतर देखा गया है कि पीने जाते समय उसके पास एक ईमानदार विचार होता है कि "आज लिमिट में पियूंगा" किन्तु उसकी बीमारी का जो लक्षण है कि, वो जैसे ही थोड़ा सा नशा करता है फिजिकल एलर्जी के कारण उसका शरीर और-और ( more more ) मांगने लगता है जिस कारण वो स्वयं को ज्यादा पीने से रोक नहीं पाता है। मानसिक खींचाव (mental obsession) के कारण उसका कल कभी नहीं आ पाता है। लम्बे समय तक नशे करने के बाद व्यक्ति के अंदर अपनी गलतियों के कारण अपराधबोध (guilt ), भय और खुन्नस (resentment) आ जाते है, जिसके कारण वो स्वयं को अकेला (isolate) कर लेता है। वह लोगों और परिस्थितियों का सामना बिना नशे के नहीं कर पाता है। इनके समाधान की भी आवश्यकता होती है क्योंकि नशा बंद करने के बाद ये बातें उसे फिर से नशे की ओर ले जाती हैं। अमेरिकन मेडिकल एोसिएशन ने 1956 में एडिक्शन को बीमारी घोषित किया इसके बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी 1964 में एडिक्शन को बीमारी घोषित किया है तथा भारत सरकार के स्वास्थ्य विभाग भी बीमारियों की सूची में एडिक्शन को F 9 से F 20 तक डाला हुआ है, पर हमारे समाज में इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति की छवि एक खलनायक की होती है, उसके साथ लोगों की वो सहानुभूति नहीं होती है जो की किसी अन्य बीमारी से पीड़ित व्यक्ति साथ होती है। हमारे समाज द्वारा इस बीमारी से निपटने का पहला उपचार जूता होता है, अर्थात सबसे पहले उसको पीटा जाता है और जब इससे भी बात नहीं बनती तो कसम, महामृत्युंजय जाप, यज्ञ, बाबा, भभूत आदि का दौर चलता है और सबसे आखिर में रामबाण "शादी कर दो ठीक हो जाएगा"। क्या हम किसी और बीमारी में ये तरीके उपचार के लिए आजमाते है ? 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समाधान -
दुर्भाग्यवश अभी तक चिकित्सा विज्ञान के पास कोई ऐसी दवाई नहीं है कि व्यक्ति को खिला दो और वो वह नशा करना बंद कर दे या नियंत्रिण मात्रा में करने लगे। किन्तु अमेरिका से आए 12 स्टेप प्रोग्राम ( एल्कोहलिक एनोनिमस और नारकोटिक्स एनोनिमस ) नशा मुक्ति लिए अभी तक सबसे प्रभावी रहे है , ये प्रोग्राम कहता है कि नशा मुक्ति (deaddiction) के लिए आवश्यक है कि सबसे पहले व्यक्ति स्वीकार करे की उसको नशे से समस्या है और इस कारण उसको जीवन अस्त व्यस्त हो गया है इसके बाद व्यक्ति को सबसे ज्यादा आवश्यकता मानसिक बदलाव या कहें कि विचारों में परिवर्तन की होती है। इसके लिए हमारे यहां विशेषज्ञ काउंसलर होते है। हमारे केंद्र नशा पीड़ित व्यक्तियों को बुरा व्यक्ति ना मान कर उन्हें बीमार व्यक्ति माना जाता है और प्रेम और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार किया जाता है। इस 12 स्टेप प्रोग्राम की सहायता से तथा प्रोग्राम में कुछ साइकोलॉजिकल तकनीक (साइको थेरेपीज) होती है इनसे तथा इसके साहित्य को आधार रख कर कक्षाएं होती है जिनके माध्यम से उनके विचारों में परिवर्तन करने में मदद की जाती है। जिससे वे अपनी बीमारी के प्रति एक नई और व्यावहारिक समझ विकसित कर पाते है और नशे में किए गए गलत कार्यों के कारण जो उनके अंदर अपराध बोध और भय आ जाता है, उससे मुक्त होते है। इस कार्यक्रम की कुछ मनोवैज्ञानिक तकनीक और काउंसलिंग द्वारा उनके अंदर अपने परिवार, मित्रों और समाज के प्रति जो खुन्नस उनके अंदर आ जाती है उसे भी समाप्त करने में मदद की जाती है। लगातार नशे करने के कारण व्यक्ति के विचार अस्थिर तथा संकल्प शक्ति कमजोर हो जाती है। इस समस्या को दूर करने लिए हमारे केंद्र में आयुर्वेदिक चिकित्सक के माध्यम से शिरो-धारा करवाई जाती है। ये एक बहुत पुरानी तकनीक है विचारों में स्थिरता लाने की। शिरो धारा लंबे समय तक नशा करने के कारण बहुत से लोगों को मानसिक परेशानियां हो जाती है उनके निदान के लिए मनोचिकित्सक (साइकिएट्रिस्ट) की आवश्यकता होती है जिनकी सुविधा हमारे केंद्र में उपलब्ध है। विथड्रावल एवं हेलुसिनेशन प्रबंधन( withdrawal & hallucination management) अचानक नशा बंद करने के कारण जो शारीरिक तथा मानसिक परेशानियां ( withdrawal and hallucination ) होती है कई बार तो यदि ठीक से इसका प्रबंधन किया जाए तो अत्यधिक मात्रा में नशा करने वाले ( heavy user) की अचानक नशा बंद करने से मृत्यु भी हो सकती है। इस समस्या के समाधान के लिए हमारे केंद्र में नशा मुक्ति के विशेषज्ञ साइकिएट्रिस्ट, एमबीबीएस डॉक्टर तथा नर्स की सुविधा उपलब्ध है जिनके द्वारा विथड्रावल मैनेजमेंट किया जाता है जिससे एकदम से नशा बंद करने के बाद भी उन्हें किसी तरह का कष्ट नहीं होता है। विषहरण ( detoxification) लंबे समय तक नशा करने के कारण शरीर में जो विषाणु ( toxins) बन जाते है उन्हें शरीर से निकलने के लिए शरीर का विषहरण ( detoxificarion ) दवाइयों के द्वारा चिकित्सक की देखरेख में किया जाता है। अन्य गतिविधियां हमारे केंद्र में खुला और बड़ा स्थान उपलब्ध है जिसमें व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखने के लिए नियमित योग, प्राणायाम और ध्यान करवाया जाता है। इसके द्वारा उसके मस्तिष्क के असक्रिय सेल( inactive cells) को सक्रिय करवाया जाता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार इनडोर खेलों (indoor games) के माध्यम से उसको नशे के अलावा अन्य मनोरंजन के साथ जीना सिखाया जाता है। भोजन व्यवस्था हमारे केंद्र में पीड़ित व्यक्ति को शुद्ध शाकाहारी, पौष्टिक और सात्विक आहार तथा रात को सोने से पहले दूध दिया जाता है,स्वच्छ पानी के लिए आर ओ प्लांट केंद्र में लगा हुआ है। नशा पीड़ित को घर से लेने की सुविधा कुछ व्यक्ति नशे के ऊपर अत्यधिक शारीरिक और मानसिक निर्भरता हो जाने के कारण सोचने समझने और स्वयं को रोक पाने में असमर्थ होते है, ऐसे लोगों को केंद्र में लाने के लिए वाहन सुविधा उपलब्ध है।
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DeleteGood, thanks for sharing this useful information
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ReplyDeleteBahut achchhi janlari di hai nasha mukti ke bare me aur vastavik samasya ke bare me
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ReplyDeleteBahut sundar jankari
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ReplyDeleteBhopal ka best nasha mukti kendra jo nasha peediton ke liye bahut achchha kam kar raha hai yahan ke parinam bahut achchhe hai mera bhatija yahan rah kar uski sharab chhot gayi hai
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